शहर से लेकर गांव तक फैला सूद खोरों का मकड़जाल, मूल से ज्यादा दे चुके ब्याज फिर भी सूदखोरों के जाल में फंसे कर्जदार
सूदखोरों के मकड़जाल में फ़स रहे लोग, सूद खोरों के निशाने पर जरूरतमंद गरीब लोग

सूदखोरों के मकड़जाल में फ़स रहे लोग, सूद खोरों के निशाने पर जरूरतमंद गरीब लोग।
विकास सिंह पीलीभीत।
पूरनपुर, पीलीभीत।
इन दिनों सूदखोरी एक विकराल रूप ले चुकी है। जरूरतमंद और गरीब लोग स्थानीय साहूकारों से कर्ज लेकर ऐसे मकड़जाल में फंस चुके हैं, जहां से बाहर निकलना उनके लिए नामुमकिन सा हो गया है। आलम यह है कि कई कर्जदार मूलधन से कई गुना ब्याज चुका चुके हैं, फिर भी उन्हें सूदखोरों की तरफ से मुक्ति नहीं मिल रही। पूरनपुर, सेहरामऊ उत्तरी, हजारा, घुंघचाई सहित तमाम थाना क्षेत्र में सूदखोरों का मकड़जाल फैला हुआ है। गरीब, मजदूर, छोटे तबके के लोग ही नहीं नौकरी पेशा लोग भी इनके चुंगल में फंसे हैं। गरीबों को अपनी भूमि रखकर तो नौकरी पेशा लोगों को पास बुक गिरवी रखकर कर्जा दिया जाता है। इस मकड़जाल में उलझकर कर कर्ज से उबर ही नहीं पा रहे हैं।ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर बैंकिंग सुविधाओं की कमी, तत्काल जरूरत और जागरूकता की कमी के चलते लोग साहूकारों से कर्ज ले बैठते हैं। शुरुआत में कम ब्याज दर का झांसा देकर सूदखोर कर्ज देते हैं, लेकिन बाद में ब्याज की दरें इतनी बढ़ा दी जाती हैं कि कर्जदार जीवन भर इससे नहीं उबर पाता।शहर से लेकर गांव तक फैले इस गैरकानूनी कर्ज प्रणाली में अधिकतर शिकार गरीब, अशिक्षित और ग्रामीण तबके के लोग बन रहे हैं। किसी की बेटी की शादी हो, तो किसी को इलाज के लिए पैसे चाहिए — ऐसे वक्त में जब बैंक से तुरंत कर्ज नहीं मिलता, तो लोग मजबूरी में सूदखोरों की तरफ रुख करते हैं। शुरुआत में आसान शर्तों का वादा करने वाले सूदखोर धीरे-धीरे ऊंची ब्याज दरों का बोझ डालकर कर्जदारों की कमर तोड़ देते हैं।स्थानीय लोगों का कहना है कि सूदखोर इतने बेखौफ हैं कि उन्हें न पुलिस का डर है, न प्रशासन का। कई जगह तो डर और दबाव के चलते पीड़ित खुलकर शिकायत तक नहीं कर पाते। कई बार दबाव में आकर लोग आत्महत्या जैसे कदम तक उठा लेते हैं।पूरनपुर में अभी तक सूदखोरी के खिलाफ प्रशासन की ओर से कोई विशेष कार्रवाई देखने को नहीं मिली है। पुलिस भी तब ही हरकत में आती है जब मामला मीडिया में आता है या फिर कोई बड़ी घटना घटती है। सूत्रों की मानें तो गरीब, मजदूर या किसान को कर्ज देने से पूर्व मकान व खेत अपने पास गिरवी रख लेते हैं। कहीं पैसा न मिलने की समस्या दिखती है तो इकरार नामा भी करा लिया जाता है। रकम न लौटा पाने की स्थिति में सूदखोर जमीन, मकान का अपने नाम बैनामा करा लेते हैं। किसान बच्चों की शादी या फसल के लिए सूदखोरों से कर्ज लेते हैं। अगर किसी महीने ब्याज नहीं दिया जाता तो अगले महीने से इस ब्याज पर ब्याज लगाकर वसूला जाता है। वैसे किसानों को बैंकों द्वारा भी ऋण मुहैया कराया जा रहा है मगर बैंकों के चक्कर काटने व लम्बी प्रक्रिया के चलते किसान सूदखारों के चुंगल में आ जाता है। सूदखोर अपनी मनमर्जी पर कर्ज देते और ब्याज वसूलते हैं। यह धंधा जोरदार तरीके से चल रहा है। इस पर पुलिस का कहना है कि अगर कोई आकर शिकायत करता है तो कार्यवाही की जाएगी।
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